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रविवार, 19 जून 2016
मेरे पिता - मेरे परमेश्वर
मुझे एक घटना याद आती है। तब तक मेरे दोनों बेटे हो चुके थे। मैं अपने कार्यालय में किसी अर्जेंट काम में फँस गया। उनदिनों आज की तरह मोबाइल तो थे नहीं लैंडलाइन फ़ोन भी सब जगह उपलब्ध नहीं थे। मेरे घर में उस समय फ़ोन नहीं था। मेरे ऑफिस का फ़ोन नंबर तो घर में पता था लेकिन जंहाँ मैं था वहाँ का फ़ोन नंबर घरवालों को पता नहीं था। पिताजी ने मेरे भाइयों को मेरे सभी दोस्तों के घर दौड़ा दिया। मेरे ऑफिस में भी फ़ोन करते रहे, लेकिन वहां कोई हो तो जवाब मिले।
आज मुझे गर्व है कि मुझे उनकी छत्रछाया में रहने का सौभाग्य प्राप्त है।
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