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सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

पहाड़ की बेटी

पहाड़ की एक लड़की की अदम्य जिजीविषा की अनुपम कथा।

वर्षा थी कि रूकने का नाम नहीं ले रही थी। पिछले
24 घण्टों से अनवरत जारी थी। पहाड़ों पर वर्षा बहुत
असुविधायें खड़ी करती है। पहाड़ ध्वस्त होते हैं और
उफनती नदियां क्या कुछ नहीं बहा ले जाती। जन जीवन
अस्त-व्यस्त हो उठता है।

निरंतर बरसते पानी ने वृंदा की बेचैनी बढ़ा दी थी।
वृंदा बहुत व्यग्र थी। खबर आई थी कि चमोली में ऊपर
कहीं भूस्खलन हुआ था और मार्ग पूर्णतः अवरूद्ध हो गया
था। वह अनंत को ले कर व्यग्र थी। अनंत जिस क्षेत्र में
गया हुआ था वहां पर भयंकर भूस्खलन हुआ था और
तीन गांव धरा के गर्भ में समा गये थे। उसके पास कोई
संपर्क नहीं था। मोबाइल का सम्पर्क पूरी तरह कट
चुका था। वृंदा का मस्तिष्क आशंकाओं का गढ़ बना
हुआ था। उसके मन से प्रत्येक क्षण यही दुआ निकलती
थी-हे भगवान अनंत को कुछ न हुआ हो। जैसे-जैसे
समय गुजर रहा था वृंदा की घबराहट और बेचैनी
बढ़ती ही जा रही थी। किस देवी-देवता की मन्नत
वह नहीं मांग चुकी थी ? लेकिन मन था कि किसी भी
प्रकार आश्वस्त न होता था। अंततः वृंदा को लगा कि
अगर वह ऐसे ही निष्क्रिय बैठी रही तो उसका सिर फट
जायेगा। तो क्या करे ? उसे अनंत की खोज में निकलना
होगा।

उसने संस्था के और गांव के लोगों की एक बैठक
बुलाई और उनसे अपना निर्णय कहा । उसने उनसे
सहायता की याचना की लेकिन दो लोगों को छोड़ कर
कोई भी साथ जाने को तैय्यार न हुआ। वृंदा उन्ही के
साथ निकल पड़ी।

रह-रह कर होती वर्षा से चलना दूभर हो रहा था।
मार्ग पर फिसलन थी अतः गति बहुत कम थी। रात्रि को
उन्होने कैम्प लगाया। रात गहराती जा रही थी। वृंदा की
आंखों में नींद नही थी। उसे लोगों की कृतघ्नता खल
रही थी। कैसे हर व्यक्ति ने इस अभियान पर निकलने से
जान छुड़ा ली थी। और मुंहफट गौरा ने तो कह ही दिया
था ”तू क्यों इतनी पागल हो रही है। कौन है वो तेरा ?“
क्या कोई किसी का कुछ हो तभी उसकी सहायता
की जाये ? तो ये लोग कौन थे अनंत के? क्यों वह सबके
लिये रात-दिन जुटा रहता था? चाहता तो आराम की
जिंदगी भी काट सकता था वो? कैसे नाशुक्रे लोग हैं?
वृंदा की हताशा जाती न थी। कौन है वो तेरा ? इस
वाक्य में कितनी जुगुप्सा थी कितना व्यंग्य था एक तरह
का लांछन। कौन है वो मेरा ? उसके मस्तिष्क में अनंत
से प्रथम भेंट का चित्र उभरा।

”मामाजी बस भी कीजिए“ वृंदा बोली, ”आपको याद
नहीं पिछली बार कैसे व्यक्ति से बात चली थी“
”मुझे याद है बेटी वह एक नकारा व्यक्ति था जो
सिर्फ तुम्हारी कमाई पर ऐश करना चाहता था।“
”फिर?“
”लेकिन यह ऐसा व्यक्ति नहीं है।“ मामाजी वृंदा को
रोकते हुये बोले, ”मैंने पूरी जानकारी कर ली है। अनंत
एक पर्यावरणविद है और उसे पहाड़ पर रहने में कोई
आपत्ति नहीं है। बल्कि वह तो उत्साहित है।“
”पहाड़ देखा नहीं होगा” वृंदा व्यंग्य सहित बोली।
”हाँ, ये सच है। किन्तु मेरा विश्वास जानो वह बहुत
ही होनहार युवक है।“
”तो फिर विदेश क्यों नहीं गया ?“
”तुम क्यों नहीं गई ?“
”मैं तो पागल हूँ। मुझे तो पहाड़ में शिक्षा का प्रसार
करने का जुनून है।“
”वह पागल तो नहीं है लेकिन उसे देश सेवा का

जुनून अवश्य है। 

आगे के घटनाक्रम के लिए निम्नलिखित पर क्लिक करें। 

https://drive.google.com/file/d/0B7OG6_zQAHC_X052Nnc4azEzUjg/view?usp=sharing

3 टिप्‍पणियां:

इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवां साल लग रहा है...!

  इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवां साल लग रहा है...! इसलि ए नहीं कि आज की तारीख चालू साल की आखिरी तारीख है और जिसे फिर दोहराया नही जा सकगा, इसलिए ...