हत्या
हृदयेश (2
जुलाई 1930-31
अक्टूबर 2016) की
एक कालजयी रचना
हृदयेश का पूरा नाम हृदय नारायण मेहरोत्रा था. इन्होने ने गाँठ, हत्या, एक कहानी अंतहीन, सफेद घोड़ा काला सवार, साँड, पुनर्जन्म, दंडनायक, पगली घटी, हवेली सहित 13 उपन्यास लिखे थे. कई कहानी संग्रह और आत्मकथा भी लिखी. उनके उपन्यास ‘सांड़’ और ‘सफेद घोड़ा काला सवार’ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पुरस्कृत हो चुके हैं. उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा साहित्य भूषण और पहल सम्मान से नवाजा जा चुका है.
‘हत्या’ इनका दूसरा उपन्यास था जो अगस्त १९७१ में प्रकाशित हुआ था. यह उपन्यास अपने विषय, गठन और गहरी अंतर्दृष्टि के कारण हिंदी का एक उत्कृष्ट उपन्यास है. यह आकार में बेशक छोटा है किन्तु इसका परिदृश्य विशाल है. एक साथ ये गहन और विस्तृत दोनो है. आश्चर्य यह है कि गहन होते हुए भी भटकता नहीं और विस्तृत होते हुए स्थूल नहीं होता.
‘हत्या’ हृदयेश की संवेदनात्मक परिपक्वता का जीवंत दस्तावेज है. स्वतंत्रता के उपरांत हम कहाँ मरते गए और कहाँ दूसरों को मारते गए; किन अपराधों के लिए पुरस्कृत हुए और किन आदर्शों के लिए दण्डित-उपन्यास इन सब की बड़ी निस्संगता से पड़ताल करता है और सब कुछ बड़े रोचक और प्रभावी ढंग से उदघाटित कर देता है .
‘हत्या’ में हत्याओं के इतने विविध प्रकार उदघाटित किये गए हैं कि पाठक सन्न रह जाता है. जैसे जैसे पाठक उपन्यास में धंसता है उसकी चेतना को यह विलक्षण उपन्यास अनेक धरातलों पर जिस आतंक से घेरता है वह लेखक के अद्वितीय कौशल का सशक्त साक्ष्य है.
एक छोटे से गाँव की ज़िन्दगी को केंद्र बनाकर लिखा गया ये उपन्यास उस समय की सामाजिक स्थिति और परिवेश को अत्यंत सहजता से दृश्यमान कर देता है. विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की जिजीविषा और छटपटाहट का सजीव चित्र उकेरते हुए भी मजाल है कि हृदयेश कहीं भावुक हो जाएँ. पक्षधरता तो उन्होंने सीखी ही नहीं, वे शोषित को भी उतनी ही निस्पृहता से प्रस्तुत करते हैं जितनी निस्पृहता से एक शोषक को.
आइये, आज इस महान कथाकार की पुण्यतिथि पर उसका स्मरण करें.
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