श्री अंकुर मिश्र की सद्यप्रकाशित पुस्तक उत्कृष्ट कहानियों का एक ऐसा संग्रह है जिसमें आधुनिक जीवन की
परिस्थितियों के मध्य मानवीय संवेदनाओं के अनेक रंग अपनी विशिष्ट आभा से प्रकट हो
रहे हैं. पुस्तक दो भागों में है –प्रथम भाग में ६ कहानियां हैं तो द्वितीय भाग
में १० लघुकथाएं.
कहानियों में आज की कार्यालयीन संस्कृति का जीवंत चित्रण मिलता है. आज की
कार्य संस्कृति के तनाव और उसके मनुष्यों
के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का अत्यंत सटीक चित्रण इन कहानियों में सजीव रूप
में मिलता है. पहली कहानी “अभी जिंदा हूँ मैं” में मानव के मशीन बनते जा रहे स्वभाव के मध्य मानवता के बचे रहने
की सम्भावना को रेखांकित किया गया है. कहानी श्री नज़ीर अकबराबादी की नज्म “आदमीनामा”
का स्मरण करा देती है.
“लाल महत्वाकांक्षाएं” इसी कार्यालयीन संकृति की चूहा दौड़ में फंसे माता-पिता
की संतान की दयनीय स्थिति को पूर्ण भयावहता के साथ सामने लाती है. कहानी का अंत इस
कहानी को कमजोर करता है. लेखक को इस पर अधिक धीरज से काम करना था.
“आत्महत्या” कहानी एक प्रेरक कहानी है. विषम परिस्थितियों में एक स्त्री के उठ
खड़े होने की गाथा. स्त्री स्वातंत्र्य को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करती हुई
सुंदर कहानी.
“द्विसंवाद” और “तबादला” आज के जीवन के दोगलेपन को उजागर करती लघुकथाएं हैं तो
“गलत सही” एक प्रश्न खड़ा करती है.
कहानियों की भाषा सरल लेकिन प्रभावी है.
शैली में एक रोचकता है जो पुस्तक को छोड़ने नहीं देती. पुस्तक एक ही बैठक में पठनीय
है, बल्कि पढ़ डालने को बाध्य करती है. ये एक ऐसी पुस्तक है जिसे आप बार –बार पढना
चाहेंगे क्योंकि एक बार पढने के उपरांत पुस्तक कहीं न कहीं आपसे एक अपनापा स्थापित
कर लेगी.
पुस्तक की साज सज्जा और विषयवस्तु इतनी सार्थक है कि इस पुस्तक को आप सहेज कर अपने
संग्रह में रखना चाहेंगे.
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