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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018


 खाकी वर्दियों का जंगल

श्री ककरलापुड़ी नरसिम्हा योग पतंजलि जिन्हें प्यार से सभी के. एन. वाय. पतंजलि कहा करते थे, तेलुगु के सिद्धहस्त कथाकारों में गिने जाते हैं. उनकी रचनाओं का तेलुगु साहित्य में विशिष्ट स्थान है. 

उनका चर्चित उपन्यास “खाकी वनम “ एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसमें पुलिस तंत्र के सबसे निचले सोपान पर काम कर रहे पुलिस के सिपाहियों की दयनीय दशा और अमानवीय कार्य अवस्थाओं का जीवंत चित्रण मिलता है. यद्यपि कहानी आन्ध्र प्रदेश के एक कसबे में घटित होती दर्शायी गई है तथापि ये सारे देश के पुलिस तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है.


उपन्यास का प्रारम्भ अर्दली की ड्यूटी भुगता रहे एक सिपाही के वर्णन से होता है जिसे पुलिस अधीक्षक (एस. पी.) की पत्नी द्वारा एक बच्ची की पॉटी धोने का आदेश दिया जाता है. इस एक घटना के माध्यम से इन पुलिसकर्मियों की अमानवीय कार्य स्थिति का सटीक, प्रभावी और सजीव दृश्य प्रस्तुत करते हुए लेखक ने पुलिस कर्मियों के विद्रोह की भूमिका रच दी है.


उपन्यास बहुत तेज गति से चलता है और पुलिस तंत्र में अंतर्निहित शोषण और पक्षपात का सजीव दस्तावेज बन कर उभरता है.


उपन्यास एक थ्रिलर का आनंद देता है. आद्योपांत कथा अत्यंत द्रुत गति से भागती है और पाठक को सांस लेने की मोहलत नहीं देती.


वर्ष १९८० में तेलुगु में प्रकाशित इस पुस्तक का रोचक हिंदी अनुवाद डॉ. के. वी. नरसिंह राव द्वारा किया गया है जो अक्षर प्रकाशन, नई दिल्ली से “खाकी वर्दियों का जंगल” के नाम से  प्रकाशित हुआ था. पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण भी उपलब्ध है .


इस पुस्तक को पढना एक झकझोरने वाले अनुभव से गुजरना है .


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