फ़ॉलोअर

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

आधुनिक शिक्षा


वर्षों पूर्व एक बाल कविता लिखी थी, आज मेरा बेटा उसे खोज लाया।  सादर  प्रस्तुत  है।

http://www.moderneducation.co/wp-content/uploads/2015/02/creativity.jpgआगार सूचनाओं का
भंडार  परिभाषाओं का,
सूत्रों की तोता रटन्त
शिक्षा संसार आज का।

शिक्षा उसे कैसे कहें
देती न हो जो संस्कार,
उपाधि पाकर भी है मानव
काम का न काज का।

भूगोल पढ़ता है कभी
पढ़ता  कभी इतिहास है,
हतोत्साहित, भ्रष्ट, व्याकुल
शिक्षित मानव आज का।

ज्ञान जिसका ध्येय हो
और लक्ष्य मानव धर्म हो,
ऐसी शिक्षा हो तो होगा
नव निर्माण समाज का।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवां साल लग रहा है...!

  इक्कीसवीं सदी को इक्कीसवां साल लग रहा है...! इसलि ए नहीं कि आज की तारीख चालू साल की आखिरी तारीख है और जिसे फिर दोहराया नही जा सकगा, इसलिए ...