वर्षों पूर्व एक बाल कविता लिखी थी, आज मेरा बेटा उसे खोज लाया। सादर प्रस्तुत है।
भंडार परिभाषाओं का,
सूत्रों की तोता रटन्त
शिक्षा संसार आज का।
शिक्षा उसे कैसे कहें
देती न हो जो संस्कार,
उपाधि पाकर भी है मानव
काम का न काज का।
पढ़ता कभी इतिहास है,
हतोत्साहित, भ्रष्ट, व्याकुल
शिक्षित मानव आज का।
ज्ञान जिसका ध्येय हो
और लक्ष्य मानव धर्म हो,
ऐसी शिक्षा हो तो होगा
नव निर्माण समाज का।
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